नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-35

लक्षणा अपने हाथ में मृग के सींग का वह छोटा सा टुकड़ा लिए जब आगे बढ़ रही थी, तब ऐसे लग रहा था जैसे कोई बच्चा बड़ा सा पुरस्कार पाकर अपने घर लौट रहा हो। इतनी बड़ी परीक्षा के समय भी इतनी सरलता और कोमल हृदय लेकर सफर करने वाले विरले ही मिलते हैं। और शायद उनमें से एक लक्षणा थीं, जिसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता कि वह अपने लक्ष्य तक पहुंच भी पाएगी कि नहीं। आगे कहीं और बड़ी चुनौती तो नहीं?

लक्षणा सब कुछ भुलाकर वह निरंतर उस सींग के छोटे से टुकड़े को लेकर आगे बढ़ रही थी। अचानक उस पहाड़ी के आखिरी हिस्से पर जाते ही उस सींग के टुकड़े में हलचल हुई, और वह अचानक एक कमल की कली के रूप में परिवर्तित हो गई। उतना ही कोमल और उतना ही प्यारा। अब तो लक्षणा और भी खुशी में झूमते हुए आगे बढ़ गई, क्योंकि उसका ध्यान सफलता या असफलता के लिए नहीं, परंतु लोक कल्याण के लिए था। और लोक कल्याण के लिए चलने वाले व्यक्ति बिना किसी चिंता के निरंतर अपने पथ पर बढ़ते जाते।

लक्षणा ने देखा जैसे ही वह परिवर्तित सींग जो अभी कमल की कली के रूप में परिवर्तित था। लक्षणा पहाड़ के अंतिम सिरे तक पहुंची ही थी, तो ऐसे लगा जैसे आगे जानें का कोई रास्ता ही शेष नही। लेकिन समुद्र के शोर की तरह आवाज वहां स्पष्ट रूप से गूंज रही थी। तब लक्षणा ने अनजाने ही उस कमल की कली को पर्वत शिखर के अंतिम छोर की ओर हवा में घुमाया और देखते ही देखते सामने पर्वत की गहराइयों में विशाल समुद्र और वह जिस स्थान पर खडी थी। उससे थोड़ी ऊंचाई पर बादलों का समूह नजर आया।

लक्षणा के लिए बड़ी असमंजस की स्थिति थी। रास्ता कहीं नजर नहीं आ रहा था, क्योंकि पर्वत से लगा हुआ विशाल समुद्र को पार कर पाना संभव नही और आकाश एवम् समुद्र के बीच का रास्ता पार करना उसके बस में नहीं। तभी उसे याद आई उन प्रतिरूपों की जिन्होंने उसे वरदान दिया था, कि जब भी उनकी आवश्यकता होगी वे मदद के लिए तुरंत उपस्थित हो जाएंगे

लक्षणा यह बात भली-भांति जानती थी, कि ऐसे असमंजस की स्थिति में द्वार का निर्माण करना, किसी देवता, गंधर्व या यक्षों का ही काम हो सकता है, क्योंकि किसी नए तरीके की चुनौती प्रकृति में पैदा करना और जो है, वह ना दिखे , और जो दिख रहा है वह ना हो। ऐसी रचना का निर्माण करना सिर्फ पूरी प्रकृति में ही मयदानव और देव विश्वकर्मा दोनों के ही बस में था।

इसके अतिरिक्त उन शक्तियों का कुछ अंश उनके शिष्यों जिसमें यक्ष, गंधर्व और देवता शामिल थे। उनके लिए ही संभव है। इसलिए लक्षणा ने उन देव प्रतिरूपों को स्मरण किया और देखते ही देखते वे पांचों लक्षणा के सामने उपस्थित हो गए। लक्षणा ने उन्हें प्रणाम कर अपनी दुविधा बताई। जिसके उत्तर में उन पांचों ने लक्षणा को सलाह दी, कि हे लक्षणा हम बेसक बाध्य हैं तुम्हारी मदद के लिए और मदद भी करेंगे। लेकिन इस स्थान की गरिमा को रखते हुए बिना एक प्रश्न का जवाब दिए हम तुम्हारी मदद करने में असमर्थ है।

लक्षणा सोच समझकर और उचित विचार के साथ तुम हमारे एक सरल प्रश्नों का उत्तर दो। और हमें पूर्ण विश्वास है कि तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। लक्षणा तुम्हारा कल्याण हो। अब प्रश्न सुनो.....

हे लक्षणा समुद्र, उसकी लहरें और आकाश देखकर तुम्हें वास्तव में क्या संकेत प्राप्त होता है?? विचार करो और हमें बताओ कि किसके साथ चलना है। तुम्हारे लिए ज्यादा आसान होगा। दोनों ही मार्ग अवश्य ही थोड़े कठिन और थोड़े सरल हो सकते हैं, लेकिन दोनों ही तुम्हारी मंजिल तक जाते हैं। अब कहो लक्षणा की, तार्किक बुद्धि से और शास्त्रों के कहे अनुसार यदि दोनों को मिला दिया जाए या तुम्हारे खुद के विचार, जो शिक्षा आजतक तुमने प्राप्त की हमें उत्तर प्रदान करो। तुम्हारा हर जवाब सही होगा, लेकिन उसी जवाब के आधार पर मंजिल तक देरी से पहुंचना या अल्प समय में पहुंच जाना निर्भर करेगा।

लक्षणा को यह समझते देर नहीं लगी, कि प्रश्न साधारण सा था, और उसमें ज्यादा गूढ़ विचार की आवश्यकता नहीं थी। लक्षणा ने उन देवों को प्रणाम कर कहा.....हे पंचभुत शक्तियां जो मेरा मत कहता है, और यदि मैं सही हूं तो यह विशाल समुद्र मन की स्थिति को दर्शाता है। जिसमें यह उठती हुई विशाल लहरे मनुष्य का भ्रम और उसकी अस्थिरता को दर्शाती है। यह विचार बहुत हद तक शास्त्र के मातानुसार मुझे सही नजर आए। वही आकाश सत्य का प्रतीक, जो अस्थिर मन के ऊपर वायु सा विवेक और उससे उत्पन्न धीरज के ऊपर स्थिर रही है।

यह स्पष्ट दर्शाता है, कि चाहे कितनी भी मन की अस्थिरता रहे। यदि साधक अपनी बुद्धि और विवेक का उपयोग करें तो सत्य को स्वीकार करने और उसे सर्वोच्च शिखर प्रदान करने का सामर्थ्य रखती है। मुझे तो यह सब देखकर कुछ ऐसा ही भान होता है। आगे आप अपनी उचित राय दे।

लक्षणा के विचार सुन पंचभुत शक्तियां प्रसन्न हुई और लक्षणा से कहा.... लक्षणा हमें पूरी उम्मीद थी, कि तुम हमें निराश नहीं करोगी। तुम्हारे विचार वाकई अतुल्य है। इसलिए हम तुम्हें सत्य के मार्ग से अगले द्वारा तक पहुंचाने का मार्ग देते हैं, और कहते ही कहते आकाश के समतुल्य एक रास्ता नजर आने लगा।

लक्षणा चंद कदम चली ही, थी कि उसके हाथ की कली थोड़ी विकसित नजर आई। उस कमल की कली को खिलता देख लक्षणा इस बात से आश्वस्त हो गईं कि अब मंजिल बहुत ज्यादा दूर नहीं है। और तभी अचानक तेज फूंकार के साथ एक दरवाजा खुलते ही विशाल सर्पों की सेना जैसे लक्षणा का ही इंतजार कर रही थी।

उन सब के बीच एक मृत्यु देह, जो किसी शूरवीर का लगता था  पड़ी हुई थी। और उसी के सामने एक सुंदर नाग कन्या हाथ में मणि लिए हुए खड़ी नजर आ रही थी। पछतावा करते हुए एक राजकुमार हाथ में धनुष लिए ही हुए कह रहा था.... हे लक्षणा अज्ञानतावश मैंने अपने पिता का वध कर दिया। लेकिन इसमें मेरा कोई दोष नहीं है। युद्ध की पुकार और ललकार किसी भी शूरवीर को बैठे नहीं रहने देती। अब तक मेरा इससे कोई परिचय नहीं था। तुम ही बताओ कि इतिहास के अनुसार मेरा इनसे क्या संबंध है?? और कैसे उन्हें जीवित किया जा सकता है??

क्रमशः....

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